Sunday, January 29, 2012

एक कोमल उमंगों भरा सपना लिए
अपनी ही धुन में जिए जा रहा था
साहिल पे बना के रेत का महल
लहरों से दूर उसे किए जा रहा था

एक ऐसी दुनिया के सपने संजोता था
जो वास्तविकता से बिल्कुल परे था

ना नफ़रत का नाम था जिसमें
ना ही संघर्षों से जीवन भरा था

अब जब ज़िंदगी का असली रूप सामने आता है
तो लगता है झुठे घरौंदों के तिनके
मोती की तरह इकट्ठे किए जा रहा था

एक कोमल उमंगों भरा सपना लिए
अपनी ही धुन में जिए जा रहा था
साहिल पे बना के रेत का महल
लहरों से दूर उसे किए जा रहा था
_______________राज

Saturday, May 21, 2011

बिक कर अन्ना, बन गया जिन्ना

स्व. मो. रफ़ी साहब का एक गाना याद आता है “ क्या हुआ तेरा वादा, वो क़सम वो इरादा”। कुछ ऐसा ही पूछने का मन करता है तथाकथित गांधी वादी आदर्शों को ले कर चले, लोकप्रिय हुए पाखंडी अन्ना हजारे से। मित्रों, जब अन्ना हजारे नाम से लोकप्रिय एक बूढा, अविवाहित, मंदिर में सोनेवाला आदमी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोकपाल बिल के विकल्प के साथ देश के सामने आया और बिल के लागू होने तक आमरण अनशन करने की घोषणा की तो पूरे देश में उसके प्रति उम्मीद और समर्थन की लहर चल पड़ी.। फ़ेसबुक, ट्वीटर और ओर्कुट सरीखे वेब साइट पर मानो उनके समर्थकों की भीड जुटाने की मुहीम सी छिड गई थी। लेकिन हमने देखा कि सरकार ने प्रस्तावित समिति में उसे शामिल करने की घोषणा क्या कर दी,उसने अपना अनशन ही तोड़ दिया। खैर हमने यह सोंचकर कि हमें अनशन के चलने या टूट जाने से क्या लेना देना;असल मुद्दा तो है कि किसी तरह जनलोकपाल बिल संसद में पेश हो और अपने मूलस्वरूप में पारित हो.हमने यही सोंचकर अन्ना और उनके साथियों पर लग रहे विभिन्न प्रकार के आरोपों को नजरंदाज कर दिया और चट्टान की तरह उनके पीछे खड़े रहे.। लेकिन कुछ ही दिनो में अन्ना गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे। अभी तक अन्ना के तेवरों को देखते हुए इस बात का आभास तक नहीं था कि हमारे साथ धोखा भी हो सकता है। लेकिन अब लगता है कि अचानक अन्ना के राग बदल गए हैं। अब अन्ना जिस तरह बदले हुए सुर में बोलने लगे हैं हमें संदेह होने लगा है कि कहीं हमारे साथ एक बार फिर से धोखा तो नहीं हुआ है? कहीं एक बार फिर से हमने पत्थर को हीरा तो नहीं समझ लिया? कहीं अन्ना एंड कंपनी केंद्र की महाभ्रष्ट सरकार से मिली हुई तो नहीं है? मुद्दा विकास का हो या भ्रष्टाचारमुक्त समाज की स्थापना का आजादी के बाद से ही हम भारतवासी सिर्फ छले ही जा रहे हैं। हम अपने जिन नुमाईन्दों को अपने प्रति वफादार समझ लेते हैं बाद में वे सिर्फ पैसों और कुर्सी के प्रति वफ़ादारी निभाने में लिप्त हो जाते हैं। मित्रों, भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में टूट जाने लेकिन नहीं झुकने का दंभ भरनेवाले अन्ना अब यानि संघर्ष के प्रथम चरण में ही झुकते हुए से प्रतीत हो रहे हैं.उन्होंने हमारी उम्मीदों पर चैत के महीने में तुषारापात करते हुए कहा है कि सभी उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाएगा। अन्ना ने ऐसा क्या सोंचकर और किस तरह की मजबूरी में आकर कहा है ये तो वही जानें.लेकिन मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय से रातोंरात भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार को तो स्वयं सर्वोच्च न्यायालय स्वीकार कर चुका है। उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बालाकृष्णन पर पद का दुरुपयोग कर अकूत धन जमा करने के जो आरोप हैं क्या वे समाप्त हो गए हैं? क्या अब बालाकृष्णन और दिनकरण सरीखे भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता समाप्त हो गयी है? क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार अन्य क्षेत्रों यहाँ तक कि अधीनस्थ न्यायालयों में कायम भ्रष्टाचार से किसी मायने में अलग है? आज कल न्यायालय वो जगह है जहां आदमी तो आदमी, कुर्सी, टेबल, खिडकी, दरवाजे यहां तक की माननीय न्यायाधीशों के सिर के उपर चलने वाले पंखे या चवंर तक पैसा मांगते हैं। क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्ट तत्वों के होने से अधीनस्थ न्यायालयों या देश से भ्रष्टाचार के समाप्त होने में किसी तरह की मदद मिलेगी? मित्रों, ऐसा हरगिज नहीं है.फिर अन्ना क्यों और कैसे समझौतावादी हो गए? मित्रों,मैं जहाँ तक समझता हूँ कि कोई भी समझौता झुकने की प्रक्रिया का अंत नहीं होता बल्कि केवल और केवल एक शुरुआतभर होता है। एक बार समझौता कर लेने के बाद आदमी समझौते पर समझौते करने लगता है। तो क्या अन्ना आगे और भी ज्यादा झुकनेवाले हैं और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार से रसासिक्त सभी क्षेत्रों के अपराधी प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर तो नहीं हो जाने वाले हैं? मित्रों, जाहिर है कि अभी यह एक परिकल्पनात्मक प्रश्न है।
हमारे आन्ना जी कोई पहली बार समझौता और धोखा ( चाहे मजबूरी में सही ) नहीं कर रहे. बाबा रामदेव ने उन्हें खर्च दिया, कार्यकर्ता दिए, मंच दिया, एक सीमित क्षेत्र के जनसेवक नेता से राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुंचाने का काम किया. उसकी दक्षिणा इन महोदय ने जानते हैं कैसे चुकाई? १.जन सभा के दिन भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं को कहा गया कि वदेमातरम और भारत माता की जय के नारे लिखे बैनर मैदान से बाहर ले जाओ. २.मंच पर काले धन और भ्रष्टाचार का मुख्य मुद्दा ओझल हो गया. ३.पृष्ठ भूमि में रह कर सारी व्यवस्थाये करवाने वाले स्वामी रामदेव का नाम एक बार भी न लिया गया.अब सोचिये कि कौन लोग हैं जिन्हें भारत माता कि जय, वंदेमातरम से परहेज़ है या चिढ है ? कौन हैं जो काले धन का मुद्दा पृष्ठ भूमि में डालना चाहते हैं? कौन हैं जो काले धन के पैरोकारों को हीरो बनाने के लिए, दूध का धुला दिखाने के लिए अन्ना का इस्तेमाल कर रहे हैं ? क्या कमाल है कि श्रीमती सोनिया गाँधी कहती हैं कि वे अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम का समर्थन करती हैं, अगला कमाल यह कि अन्ना सोनिया की प्रशंसा करते हैं. अरे अंधा भी जानता है कि देश को लूटने, पुरातात्विक सामग्री की तस्करी करने वाला कौन है ? कौन है जिसके इशारे पर इटली के बैंक भारत में खोले गए हैं ? सब सामने है और अन्ना देश को लूटने वाले वास्तविक अपराधियों की प्रशंसा कर रहे हैं। साफ़ है कि वे किन ताकतों के मोहरे बन चुके है। ऐसे लोग केवल बाबा रामदेव को राष्ट्रीय परिदृश्य से बाहर करने के प्रयास में है। उनके रास्ते में केवल बाबा ही रुकावट है। अन्ना का क्या है, जिधर चाहो मोड़ लो । जो चाहो कहलवा लो। जो चाहो करवालो। यह है स्थिति। इसे समझना ज़रूरी है। वैसे भी स्वामी अग्निवेश जैसे लोगों के साथ बैठने वालों से क्या उम्मीद की जा सकती है। मैं यहाँ अन्ना और उनके सहयोगियों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारत की जनता को केवल और केवल जन लोकपाल चाहिए और अपने मूल स्वरुप में चाहिए। हम इसमें इसे कमजोर करनेवाला छोटा-से-छोटा संशोधन भी स्वीकार नहीं करेंगे। अन्ना जी अगर आप ऐसा करने को तैयार होते हैं चाहे कारण जो भी हो,तो देश की जनता आँख मूंदकर यही समझेगी कि आपलोगों ने उनके साथ धोखा किया है और आपलोग भी कतिपय नेताओं की तरह बिक गए हैं,गद्दार हैं.। लगता है जैसे एक गांधी को ले कर चले और दूसरे गांधी से मिल कर, बिक कर हम सब का अन्ना बन गय जिन्ना।
“कौडी है दूर की ,लोकपाल बिल की बात,
भ्रष्टी टीम तैयार है करने वज्रघात
करने वज्रघात कमीटि में होंगे पंगे
फ़सना चाहे कौन, हम्माम में है सब नंगे
हम्माम में है सब नंगे, अब जग जाओ मित्रों
वरना सब की इज्जत लूट लेंगे ये लफ़ंगे।”


राज रंजन





Monday, May 9, 2011

मदर डे


मदर डे
कल रात मेरी बहन ने मुझे फ़ोन किया और पूछा” भैया तुम ने मां को विश किया?” मैं सोच में पड गया और दिमाग पे ज़ोर डालने लगा कि मम्मी का बर्थडे तो जनवरी में है और पापा के गुज़र जाने के बाद उनकी मैरेज एन्वर्सरी (जो 3 मई को पडती है) की भी विश नहीं कर सकता हूं, और मैं झट से पूछ बैठा “किस बात के लिए?” उसने समझाने के लहज़े में कहा “अरे आज मदर डे है न” “मदर डे?” मैं ने अपना सवाल दागा “ये क्या होता है?” “अरे जैसे टीचर्स डे, चिल्ड्रेन्स डे, वैलेनटाइन डे और नियु इयर डे होता है वैसे ही मदर डे होता है” एक सांस मे सब कह गई वो मेरी जिज्ञाशा ने फिर सवाल किया “पर इसमें होता क्या है?” “आज के दिन अपनी मम्मी को हैपी मदर डे कहते हैं,” वो बोलती गई “उसे खुश करने के लिए उसे गिफ़्ट देते हैं और उसकी लम्बी उमर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं” मैंने पूछा “इस चलन की उत्पत्ती कहां से हुई है?” वो बोलती गई “वैसे तो इस चलन की उत्पत्ति का श्रेय पश्चिमी सभ्यता को है पर अब ये भारत में भी काफ़ी पोपुलर है” मैं सोच में पड गया हम भारतीय आज भी विदेशी चीजों के कितने इच्छुक हैं। विदेशी चीजों के लिए अपनी सभ्यता, संसकार एवं मान सम्मान का भी बलिदान करने को तैयार रहते हैं
अब एक खास दिन मदर डे मनाने के पीछे क्या तर्क है ये मेरी समझ के परे है सिर्फ़ एक दिन का मान सम्मान बाकी के 364 दिन का क्या? और फिर हर दिन क्यूं नहीं? माता पिता का इस दुनियाँ में कोई पर्याय नही है जिन्हों ने हमारी रचना की वो हर दिन ,हर पल पूजनीय हैं इन पश्चिमी सभ्यता वालों के लिए मां बाप और घर परिवार के मायने अलग हैं शादी से पहले घर का मतलब एक रात बिताने की जगह से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है और शादी के बाद वो घर, मां, बाप सब पराए हो जाते हैं जो मां बाप एक कमरे में चार चार बच्चे के साथ रह पाते थे उन्ही मां बाप को बुढापे में ये बच्चे एक बडे घर में अपने साथ नही रख पाते है “ओल्ड एज़ होम और सेकेन्ड इनिंग होम“ इन पश्चिमी सभ्यता वालों की देन है हम भारतीय भी इनका अनुशरण करने में पीछे कहां रहने वाले थे? बडे बडे शहरों मे रोजाना खुलते ऐसे होम इनका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं
आज जिनके भी पिता जीवित हैं या जिनकी माता जीवित हैं वो दुनियाँ के सबसे अमीर लोग हैं सबसे सम्पन्न लोग हैं याद कीजिएगा जब हम सभी बहुत छोटे होते थे और मां के गोद में होते थे और मां का स्तनपान करते थे तो उस मां का एक स्तन मुंह मे लेकर मां को उसके दूसरे स्तन पर अपने छोटे छोटे पैरों से न जाने कितनी बार मारा होगा पर उस मां ने कभी दूध पिलाना बन्द नहीं किया तो लात खा कर भोजन देने की शक्ति उस परम पिता परमेश्वर ने दुनियाँ में अगर किसी को दी है तो वो मां को दी है याद कीजियगा जब हम चौके में, रसोई में बैठ कर खाना खाते थे और मां खाना पकाती थी, उस वक़्त थाली पर बैठ कर जब भी हमने इधर उधर नज़र घुमाया, मां तुरत समझ जाती थी और नमक का डिब्बा हमारी तरफ़ सरका देती थी हमारे बिना कुछ भी बोले सब कुछ समझ जाने की क्षमता रखने वाली सिर्फ़ मां ही होती है वो सिर्फ़ मां ही होती है जो परीक्षा देने जाते समय दही चीनी की कटोरी लेके शगुन बन के हमारे सामने खडी हो जाती है
इस सन्दर्भ में रमेश सोज साहब की चार पंक्तियों पर गौर किजिए:
“बहुत रोते है लेकिन दामन हमारा नम नहीं होता ,
इन आँखों के बरसने का कोई मौसम नहीं होता,
में अपनों दुश्मनो के बीच भी महफूज़ रहता हूँ,
मेरी माँ की दुओं का खज़ाना कम नहीं होता ...”

स्वामी नाथ पाण्डे की तीन पंक्तियों वाले उपन्यास पर जरा ध्यान दें, कहते हैं:
एक विधवा मां थी उसके दो बेटे थे, एक बेटा उपर वाले माले पर रहता था, दूसरा बेटा नीचे वाले माले पर रहता था, मां 15 दिन एक बेटे के घर खाती थी, 15 दिन दूसरे बेटे के घर खाती थी, पर उस विधवा मां का दुर्भाग्य था कि जिन जिन महीनों मे 31 तारीख आता था उस दिन उस मां को उपवास रखना पडता था

जब नौ महीने अपनी कोख में सहेज कर रखने वाली मां जिन नालायक बेटों को भारी पड़ने लगी हो तो उन्हें स्व ओम व्यास ओम जी की कालजई कविता पढ़नी चाहिये शायद उन्हें सद बुद्धि आ जाय प्रस्तुत है स्व ओम व्यास ओम जी की अनमोल रचना:-

माँ, माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास हैमाँ,

माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,

माँ, माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,

माँ, माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,

माँ, माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,

माँ, माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,

माँ, माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,

माँ, माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,

माँ, माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,

माँ, माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,

माँ, माँ कलम है, दवात है, स्याही है,

माँ, माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है,

माँ, माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,

माँ, माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,

माँ, माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,

माँ, माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,

माँ, माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कं धों का नाम है,

माँ, माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,

माँ, माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,

माँ, माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,

माँ, माँ चुल्हा-धुँआ-रोटी और हाथों का छाला है,

माँ, माँ ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है,

माँ, माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,

बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है,

तो माँ की ये कथा अनादि है,

ये अध्याय नही है……और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,

तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,

और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,

और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,

तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,

और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ।

तो मित्रों मां को सिर्फ़ “मदर डे” पर नहीं हर दिन हर पल हर सांस नमन करें मां के चरणों मे स्वर्ग है, वो हर पल हमारी ही खुशी के लिये जीती रहती है आईए शपथ ले कि हम मां को हर पल “मदर डे” की सौगात देंगे अन्त मे सिर्फ़ इतना कहना है,

“धरती पे इश्वर की तलाश है,
मालिक तेरा बंदा कितना निराश है,
क्यों खोजता है इन्सान इश्वर को,
जबकि तेरे दूसरे रूप में माँ उसके इतने पास है”

इश्वर इस लिये सर्वशक्तिमान है,
अराध्य है,पूजनीय है
क्योंकि उसने मां की रचना की

राज रंजन



Sunday, April 24, 2011

बयान

कहते हैं,नारी ने श्रीष्टि की,
और प्रगति की राह दिखाई है
पर इस प्रगति की राह पर,
आज स्त्री की सत्ता और महत्ता ने,
किस कदर चोट खाई है
इस सुजलाम सुफ़लाम,
मलयज शीतलाम,
धरती पर नारी,कभी रूपवती थी
कभी विधवा तो,कभी सती थी
पर आज वो बन गई है,
एक खिलौना,
बाज़ार में बिकने वाली एक चीज
और रात का बिछौना
एक गांव की एक बुढ़िया पर
हुआ ज़ुल्म और अत्याचार,
उसकी जवान बेटी के साथ
किया चार लोगों ने बलात्कार
सारे गांव में कोई न समझा
उन दोनो का दर्द
एक फ़ैसला किया सर्द
उल्टा लडकी पर ही बदचलनी का
लगाकर इलज़ाम
दिया गांव से दोनो को निकाल
अपनी पीड़ा न कोई
दूजा जाने
गाथा कहने बुढ़िया
पहुंची थाने
बयान दर्ज़ कर सिपाही ने
थानेदार से मिलवाया
उसने भी बयान ले कर
कोर्ट मे केस चलाया
सुनवाई के दिन वकील ने कहा
“ऐ लडकी, जज साहब को
अपना बयान दर्ज़ कराओ”
लडकी घबड़ाई और जज साहब से बोल पडी
“सबके सामने?”
“हां हां” जज साहब ने कहा,
“नि:संकोच हो कर अपना बयान दो”
भरी भरी आंखों के साथ,
लडकी लगी अपने कपडे उतारने
ऐसा देख जज साहब,
लगे चिल्लाने
“ऐ लडकी ये क्या करती है?”
रोते रोते लडकी बोली
“ हुज़ूर माई बाप,पहले सिपाही,
फिर थानेदार
और फिर आपके वकील साहब ने
ऍसे ही बयान दर्ज़ किया था

एक ही दिशा

हिन्दु, मुस्लिम, सिख इसाई
चारो ही भारतीय
एक सुबह, दिखा
एक सुखद चमत्कार
संम्भवतः: पहली बार
वे चारो ही एक साथ
कन्धे से कन्धा मिलाए
जा रहे थे
एक ही दिशा

दुश्मन देख घबड़ाए
ऍसी एकता?
कहीं हमला ना कर दे?
नेता सोच घबड़ाए
ऍसी देश भक्ति
कहीं सरकार ना गिरा दें?
आतंकवादी घबड़ाए
ऍसा संगठन
कहीं हमे साफ न कर दें?
जमाखोर सोच सोच घबड़ाए
ऍसी एकजुटता
कहीं भन्डाफोड़ न कर दें?
तथाकथित धर्मगुरु घबड़ाए
ऍसी एकविचारिता
कहीं पोल न खोल दें?
अपराधी, भ्रष्ट अधिकारी घबड़ाए
ऍसा मिलाप
कहीं हमें मिटा न दें?
टूटने लगे सारे भरम
हर तरफ़ होने लगा
माहौल गरम
तभी इन सभी लोगों के
होठों पे मुस्कुरहट छाई
जब सच्चाई सामने आई
कि
एक अन्धी बुढ़िया का
एक मात्र सहारा
उसका अकेला बेटा
आतंकवादियों की
गोली से मारा गया
और ये चारों
अपने अपने कौम
का
झंडा बुलन्द करने
उस बेचारे के अस्थिफूल लेने
जा रहे थे
शमशान की ओर
कन्धे से कन्धा मिलाए
पहली बार, एक साथ
एक ही दिशा

Monday, March 21, 2011

Thursday, October 28, 2010

माँ का प्यार

एक शाम करीब 8-9 साल का एक बच्चा अपनी माँ के पास आया, जो रसोई में रात के खाने की तैयारी में लगी थी, उसे उसने एक क़ाग़ज का टुकडा पकडाया जिसमें उस ने कुछ लिख़ कर दिया था। मम्मी ने अपने साडी पर बंधे एप्रन में हाथ पोछा और फिर पढ़ना शुरू किया। उस में जो लिखा था वो इस प्रकार था :……।
पूरे हफ़्ते अपने कमरे की सफ़ाई की …………… रू 15/-
पूरे हफ़्ते बगीचे मे पानी पटाया …………… रू 15/-
पूरे हफ़्ते बनिए की दुकान से सामान लाया … रू 20/-
पूरे हफ़्ते कचरे को बाहर फेका ……………………रू 20/-
तुम्हारे बाज़ार जाने पर छोटे भाई के पास बैठा…रू 50/-
अच्छा रिपोर्ट कार्ड लाने के लिए ………………… रू 35/-
कुल मेहनताना ……………………………………… रू 155/-

माँ अपलक अपने बच्चे को निहारने लगी जो पास ही खडा था और वो बच्चा अपनी माँ को कुछ भूली बिसरी यादों में विचरता देख रहा था। अचानक माँ ने एक क़लम उठाया, उस कागज के टुकडे को पलटा और लिख्नना शुरू किया। माँ ने जो लिखा वो इस प्रकार था …………

उन 9 महीनों का मेहनताना जब तुम मेरे अन्दर पल रहे थे ………………

"मैंने नहीं मांगा"
उन सारी रातों का मेहनताना जब तुम बीमार थे और मैं सारी रात तुम्हारे साथ रही, तुम्हारी सेवा की और ईश्वर से प्रार्थना की……
"मैंने नहीं मांगा"
तुम्हारी वजह से और तुम्हारे लिए बहने वाली हर आँसुओं की कीमत ………
"मैंने नहीं मांगा"
उन सारी रातों की कीमत जो भविष्य की चिन्ता और भय से भरी पड़ी थी…
"मैंने नहीं मांगा"
उन खिलौनों, कपड़ो और तुम्हारी ज़िद पूरी करने की कीमत, साथ ही तुम्हारी पौटी और नोज़ी साफ करने का मेहनताना …………
"मैंने नहीं मांगा"
मेरे बेटे जब तुम इन सब को जोडोगे तो पाओगे कि मेरे प्यार की कीमत…
"मैंने नहीं मांगा"

जब बच्चे ने पढ़ना समाप्त किया, जो उसकी माँ ने लिखा था, अपनी माँ से लिपट कर, उसने बड़ी बड़ी आँसुओं से भरी आँखों से माँ को देखा और भरे गले से बोला “ माँ मै भी तुम से बहुत प्यार करता हूँ। और उस ने कागज के उस तरफ़, जिधर उस ने लिखा था, बड़े बड़े अक्षरोँ मे फिर लिखा
“पूरा भुग़तान पाया RECEIVED IN FULL”

राज रंजन