Saturday, May 21, 2011

बिक कर अन्ना, बन गया जिन्ना

स्व. मो. रफ़ी साहब का एक गाना याद आता है “ क्या हुआ तेरा वादा, वो क़सम वो इरादा”। कुछ ऐसा ही पूछने का मन करता है तथाकथित गांधी वादी आदर्शों को ले कर चले, लोकप्रिय हुए पाखंडी अन्ना हजारे से। मित्रों, जब अन्ना हजारे नाम से लोकप्रिय एक बूढा, अविवाहित, मंदिर में सोनेवाला आदमी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए लोकपाल बिल के विकल्प के साथ देश के सामने आया और बिल के लागू होने तक आमरण अनशन करने की घोषणा की तो पूरे देश में उसके प्रति उम्मीद और समर्थन की लहर चल पड़ी.। फ़ेसबुक, ट्वीटर और ओर्कुट सरीखे वेब साइट पर मानो उनके समर्थकों की भीड जुटाने की मुहीम सी छिड गई थी। लेकिन हमने देखा कि सरकार ने प्रस्तावित समिति में उसे शामिल करने की घोषणा क्या कर दी,उसने अपना अनशन ही तोड़ दिया। खैर हमने यह सोंचकर कि हमें अनशन के चलने या टूट जाने से क्या लेना देना;असल मुद्दा तो है कि किसी तरह जनलोकपाल बिल संसद में पेश हो और अपने मूलस्वरूप में पारित हो.हमने यही सोंचकर अन्ना और उनके साथियों पर लग रहे विभिन्न प्रकार के आरोपों को नजरंदाज कर दिया और चट्टान की तरह उनके पीछे खड़े रहे.। लेकिन कुछ ही दिनो में अन्ना गिरगिट की तरह रंग बदलने लगे। अभी तक अन्ना के तेवरों को देखते हुए इस बात का आभास तक नहीं था कि हमारे साथ धोखा भी हो सकता है। लेकिन अब लगता है कि अचानक अन्ना के राग बदल गए हैं। अब अन्ना जिस तरह बदले हुए सुर में बोलने लगे हैं हमें संदेह होने लगा है कि कहीं हमारे साथ एक बार फिर से धोखा तो नहीं हुआ है? कहीं एक बार फिर से हमने पत्थर को हीरा तो नहीं समझ लिया? कहीं अन्ना एंड कंपनी केंद्र की महाभ्रष्ट सरकार से मिली हुई तो नहीं है? मुद्दा विकास का हो या भ्रष्टाचारमुक्त समाज की स्थापना का आजादी के बाद से ही हम भारतवासी सिर्फ छले ही जा रहे हैं। हम अपने जिन नुमाईन्दों को अपने प्रति वफादार समझ लेते हैं बाद में वे सिर्फ पैसों और कुर्सी के प्रति वफ़ादारी निभाने में लिप्त हो जाते हैं। मित्रों, भ्रष्टाचार के खिलाफ लडाई में टूट जाने लेकिन नहीं झुकने का दंभ भरनेवाले अन्ना अब यानि संघर्ष के प्रथम चरण में ही झुकते हुए से प्रतीत हो रहे हैं.उन्होंने हमारी उम्मीदों पर चैत के महीने में तुषारापात करते हुए कहा है कि सभी उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाएगा। अन्ना ने ऐसा क्या सोंचकर और किस तरह की मजबूरी में आकर कहा है ये तो वही जानें.लेकिन मैं उनसे पूछता हूँ कि क्या उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय से रातोंरात भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है? इलाहाबाद उच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार को तो स्वयं सर्वोच्च न्यायालय स्वीकार कर चुका है। उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बालाकृष्णन पर पद का दुरुपयोग कर अकूत धन जमा करने के जो आरोप हैं क्या वे समाप्त हो गए हैं? क्या अब बालाकृष्णन और दिनकरण सरीखे भ्रष्ट न्यायाधीशों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता समाप्त हो गयी है? क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में व्याप्त भ्रष्टाचार अन्य क्षेत्रों यहाँ तक कि अधीनस्थ न्यायालयों में कायम भ्रष्टाचार से किसी मायने में अलग है? आज कल न्यायालय वो जगह है जहां आदमी तो आदमी, कुर्सी, टेबल, खिडकी, दरवाजे यहां तक की माननीय न्यायाधीशों के सिर के उपर चलने वाले पंखे या चवंर तक पैसा मांगते हैं। क्या उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भ्रष्ट तत्वों के होने से अधीनस्थ न्यायालयों या देश से भ्रष्टाचार के समाप्त होने में किसी तरह की मदद मिलेगी? मित्रों, ऐसा हरगिज नहीं है.फिर अन्ना क्यों और कैसे समझौतावादी हो गए? मित्रों,मैं जहाँ तक समझता हूँ कि कोई भी समझौता झुकने की प्रक्रिया का अंत नहीं होता बल्कि केवल और केवल एक शुरुआतभर होता है। एक बार समझौता कर लेने के बाद आदमी समझौते पर समझौते करने लगता है। तो क्या अन्ना आगे और भी ज्यादा झुकनेवाले हैं और धीरे-धीरे भ्रष्टाचार से रसासिक्त सभी क्षेत्रों के अपराधी प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर तो नहीं हो जाने वाले हैं? मित्रों, जाहिर है कि अभी यह एक परिकल्पनात्मक प्रश्न है।
हमारे आन्ना जी कोई पहली बार समझौता और धोखा ( चाहे मजबूरी में सही ) नहीं कर रहे. बाबा रामदेव ने उन्हें खर्च दिया, कार्यकर्ता दिए, मंच दिया, एक सीमित क्षेत्र के जनसेवक नेता से राष्ट्रीय क्षितिज पर पहुंचाने का काम किया. उसकी दक्षिणा इन महोदय ने जानते हैं कैसे चुकाई? १.जन सभा के दिन भारत स्वाभिमान के कार्यकर्ताओं को कहा गया कि वदेमातरम और भारत माता की जय के नारे लिखे बैनर मैदान से बाहर ले जाओ. २.मंच पर काले धन और भ्रष्टाचार का मुख्य मुद्दा ओझल हो गया. ३.पृष्ठ भूमि में रह कर सारी व्यवस्थाये करवाने वाले स्वामी रामदेव का नाम एक बार भी न लिया गया.अब सोचिये कि कौन लोग हैं जिन्हें भारत माता कि जय, वंदेमातरम से परहेज़ है या चिढ है ? कौन हैं जो काले धन का मुद्दा पृष्ठ भूमि में डालना चाहते हैं? कौन हैं जो काले धन के पैरोकारों को हीरो बनाने के लिए, दूध का धुला दिखाने के लिए अन्ना का इस्तेमाल कर रहे हैं ? क्या कमाल है कि श्रीमती सोनिया गाँधी कहती हैं कि वे अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम का समर्थन करती हैं, अगला कमाल यह कि अन्ना सोनिया की प्रशंसा करते हैं. अरे अंधा भी जानता है कि देश को लूटने, पुरातात्विक सामग्री की तस्करी करने वाला कौन है ? कौन है जिसके इशारे पर इटली के बैंक भारत में खोले गए हैं ? सब सामने है और अन्ना देश को लूटने वाले वास्तविक अपराधियों की प्रशंसा कर रहे हैं। साफ़ है कि वे किन ताकतों के मोहरे बन चुके है। ऐसे लोग केवल बाबा रामदेव को राष्ट्रीय परिदृश्य से बाहर करने के प्रयास में है। उनके रास्ते में केवल बाबा ही रुकावट है। अन्ना का क्या है, जिधर चाहो मोड़ लो । जो चाहो कहलवा लो। जो चाहो करवालो। यह है स्थिति। इसे समझना ज़रूरी है। वैसे भी स्वामी अग्निवेश जैसे लोगों के साथ बैठने वालों से क्या उम्मीद की जा सकती है। मैं यहाँ अन्ना और उनके सहयोगियों को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि भारत की जनता को केवल और केवल जन लोकपाल चाहिए और अपने मूल स्वरुप में चाहिए। हम इसमें इसे कमजोर करनेवाला छोटा-से-छोटा संशोधन भी स्वीकार नहीं करेंगे। अन्ना जी अगर आप ऐसा करने को तैयार होते हैं चाहे कारण जो भी हो,तो देश की जनता आँख मूंदकर यही समझेगी कि आपलोगों ने उनके साथ धोखा किया है और आपलोग भी कतिपय नेताओं की तरह बिक गए हैं,गद्दार हैं.। लगता है जैसे एक गांधी को ले कर चले और दूसरे गांधी से मिल कर, बिक कर हम सब का अन्ना बन गय जिन्ना।
“कौडी है दूर की ,लोकपाल बिल की बात,
भ्रष्टी टीम तैयार है करने वज्रघात
करने वज्रघात कमीटि में होंगे पंगे
फ़सना चाहे कौन, हम्माम में है सब नंगे
हम्माम में है सब नंगे, अब जग जाओ मित्रों
वरना सब की इज्जत लूट लेंगे ये लफ़ंगे।”


राज रंजन





2 comments:

  1. Main nahin manti ki Anna ka andolan poori tarah vyarth hai. Chahe unki mansha jo rahi ho, per kam se kam desh ki janta ko ye dikhane ka ek manch to mila ki wo sarkar ke jhoothe vaadon per bharosa nahin karti aur use ab sachchai ka pata lag chuka hai. Iske sath hi sarkar ko bhi pata chala ki ab janta pehle ki tarah "koi nrip hoye humen kya hani" me vishwas nahin rakhti. Har cheez ki ek shuruat hoti hai, is andolan ke sath janta ke jagrook hone ki shuruat hui hai. Ho sakta hai Janlokpal bill waisa na ho jaisa hum chahen, per kya sirf Anna Hazare ke keh dene bhar se hum use swikar kar lenge? Nahin, humara samarthan Anna Hazare ko nahin, Lokpal bill ke liye hai aur usi ke liye rahega. Chahe koi is kaam ke liye aage aaye, faisla to janta ka hi hoga. Janta ke leader ka kaam aaj Anna Hazare ne kiya hai, agar wo asafal rahe to unhen asweekar kar ke kal janta kisi aur ko chunegi. Isliye kisi ke bhi galat irade kabhi safal nahin ho sakte wo bhi tab jab ki unhone sare desh ke samne apna agenda rakha hai. Ab janta intezar kar rahi hai bill ka...... uske baad hi sahi galat ka faisla hoga.

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  2. doosro par ungli uthane se pehle kudh ki giraban mein jhankar dekhiye mahasye ji. pehle aap bataye aaj tak aapne desh ke liye (desh chodiye wo toh bahut badi baat hai). koi choti se samsaya ke liye koi aandolan kai........ ya samaj ko jagrook karne ke liye koi kadam uthaya.

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