Sunday, January 29, 2012

एक कोमल उमंगों भरा सपना लिए
अपनी ही धुन में जिए जा रहा था
साहिल पे बना के रेत का महल
लहरों से दूर उसे किए जा रहा था

एक ऐसी दुनिया के सपने संजोता था
जो वास्तविकता से बिल्कुल परे था

ना नफ़रत का नाम था जिसमें
ना ही संघर्षों से जीवन भरा था

अब जब ज़िंदगी का असली रूप सामने आता है
तो लगता है झुठे घरौंदों के तिनके
मोती की तरह इकट्ठे किए जा रहा था

एक कोमल उमंगों भरा सपना लिए
अपनी ही धुन में जिए जा रहा था
साहिल पे बना के रेत का महल
लहरों से दूर उसे किए जा रहा था
_______________राज

1 comment:

  1. बहुत खूबसूरत नज़्म .. साहिल पर महल बनाना और लहरों से दूर करना .. सुन्दर अभिव्यक्ति

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