वक़्त नहीं
हर ख़ुशी है लोगों के दामन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए है वक़्त नहीं
टीवी के सीरियलों में सिमटा पड़ा है बचपन
अब दादी नानी के किस्से - कहानियों के लिए वक़्त नहीं
भूख भी मांगे है अब पिज्जा बर्गेर और चौमिन
कढ़ी चावल / झूरी चटनी अंचार के लिए वक़्त नहीं
माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
जिस पिता के कंधे चढ़ थी दुनियां देखी
उन कन्धों को कंधे देने का वक़्त नहीं
उम्मीद रखते हैं सब से बड़ी बड़ी
पर रिश्ते निभाने का है वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को तो हम मार चुके
अब उन्हें दफ़नाने का भी वक़्त नहीं
सारे दोस्त मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लिए है वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें
जब अपनों के लिए है वक़्त नहीं
आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का भी है वक़्त नहीं
दिल हैं ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का भी है वक़्त नहीं
पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की थकने का भी है वक़्त नहीं
पराये एहसास की क्या क़द्र करें
जब अपने सपनों के लिए है वक़्त नहीं
तू ही बता ए ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी है वक़्त नहीं
राज रंजन
बहुत खूब...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteहर पल मरने वालों को जीने के लिए भी वक्त नहीं.. सुंदर।
ReplyDeleteचिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
इच्छा हो तो यहां पधार सकते हैं -
http://gharkibaaten.blogspot.com
"तू ही बता ए ज़िन्दगी
ReplyDeleteइस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को
जीने के लिए भी है वक़्त नहीं"
अच्छी प्रवाहमय रचना और समाप्ति तो अति सुंदर
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें