मेरे पिता
बहती नदिया की धारा को जैसे
अपने भीतर समाया है सागर नें
अपनों के प्यार और सम्मान को वैसे
अपने भीतर संजोया है आपने
आप के आदर्श की परछाई तले
पले बढे हैं हम सभी
इन आदर्शों को साथ लिए
जीवन जीना सिखाया है आपने
आसमान से भी ऊंची है
आपके व्यक्तित्व की ऊंचाई
अपने सद्गगुणो से इस व्यक्तित्व को
और भी गरिमामय बनाया है आपने
कहते हैं “ धरती पे रूप माता पिता का
पहचान है उस विधाता की ”
लेकिन इन कोरी पंक्तियों को
जीवन का यथार्थ बनाया है आपने
ॐ राज रंजन ॐ
खूबसूरत एहसास से बुनी सुन्दर रचना....
ReplyDeleteआपकी ( PAPA )कविता चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
http://charchamanch.blogspot.com/