Monday, May 9, 2011

मदर डे


मदर डे
कल रात मेरी बहन ने मुझे फ़ोन किया और पूछा” भैया तुम ने मां को विश किया?” मैं सोच में पड गया और दिमाग पे ज़ोर डालने लगा कि मम्मी का बर्थडे तो जनवरी में है और पापा के गुज़र जाने के बाद उनकी मैरेज एन्वर्सरी (जो 3 मई को पडती है) की भी विश नहीं कर सकता हूं, और मैं झट से पूछ बैठा “किस बात के लिए?” उसने समझाने के लहज़े में कहा “अरे आज मदर डे है न” “मदर डे?” मैं ने अपना सवाल दागा “ये क्या होता है?” “अरे जैसे टीचर्स डे, चिल्ड्रेन्स डे, वैलेनटाइन डे और नियु इयर डे होता है वैसे ही मदर डे होता है” एक सांस मे सब कह गई वो मेरी जिज्ञाशा ने फिर सवाल किया “पर इसमें होता क्या है?” “आज के दिन अपनी मम्मी को हैपी मदर डे कहते हैं,” वो बोलती गई “उसे खुश करने के लिए उसे गिफ़्ट देते हैं और उसकी लम्बी उमर और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते हैं” मैंने पूछा “इस चलन की उत्पत्ती कहां से हुई है?” वो बोलती गई “वैसे तो इस चलन की उत्पत्ति का श्रेय पश्चिमी सभ्यता को है पर अब ये भारत में भी काफ़ी पोपुलर है” मैं सोच में पड गया हम भारतीय आज भी विदेशी चीजों के कितने इच्छुक हैं। विदेशी चीजों के लिए अपनी सभ्यता, संसकार एवं मान सम्मान का भी बलिदान करने को तैयार रहते हैं
अब एक खास दिन मदर डे मनाने के पीछे क्या तर्क है ये मेरी समझ के परे है सिर्फ़ एक दिन का मान सम्मान बाकी के 364 दिन का क्या? और फिर हर दिन क्यूं नहीं? माता पिता का इस दुनियाँ में कोई पर्याय नही है जिन्हों ने हमारी रचना की वो हर दिन ,हर पल पूजनीय हैं इन पश्चिमी सभ्यता वालों के लिए मां बाप और घर परिवार के मायने अलग हैं शादी से पहले घर का मतलब एक रात बिताने की जगह से ज्यादा कुछ भी नहीं होता है और शादी के बाद वो घर, मां, बाप सब पराए हो जाते हैं जो मां बाप एक कमरे में चार चार बच्चे के साथ रह पाते थे उन्ही मां बाप को बुढापे में ये बच्चे एक बडे घर में अपने साथ नही रख पाते है “ओल्ड एज़ होम और सेकेन्ड इनिंग होम“ इन पश्चिमी सभ्यता वालों की देन है हम भारतीय भी इनका अनुशरण करने में पीछे कहां रहने वाले थे? बडे बडे शहरों मे रोजाना खुलते ऐसे होम इनका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं
आज जिनके भी पिता जीवित हैं या जिनकी माता जीवित हैं वो दुनियाँ के सबसे अमीर लोग हैं सबसे सम्पन्न लोग हैं याद कीजिएगा जब हम सभी बहुत छोटे होते थे और मां के गोद में होते थे और मां का स्तनपान करते थे तो उस मां का एक स्तन मुंह मे लेकर मां को उसके दूसरे स्तन पर अपने छोटे छोटे पैरों से न जाने कितनी बार मारा होगा पर उस मां ने कभी दूध पिलाना बन्द नहीं किया तो लात खा कर भोजन देने की शक्ति उस परम पिता परमेश्वर ने दुनियाँ में अगर किसी को दी है तो वो मां को दी है याद कीजियगा जब हम चौके में, रसोई में बैठ कर खाना खाते थे और मां खाना पकाती थी, उस वक़्त थाली पर बैठ कर जब भी हमने इधर उधर नज़र घुमाया, मां तुरत समझ जाती थी और नमक का डिब्बा हमारी तरफ़ सरका देती थी हमारे बिना कुछ भी बोले सब कुछ समझ जाने की क्षमता रखने वाली सिर्फ़ मां ही होती है वो सिर्फ़ मां ही होती है जो परीक्षा देने जाते समय दही चीनी की कटोरी लेके शगुन बन के हमारे सामने खडी हो जाती है
इस सन्दर्भ में रमेश सोज साहब की चार पंक्तियों पर गौर किजिए:
“बहुत रोते है लेकिन दामन हमारा नम नहीं होता ,
इन आँखों के बरसने का कोई मौसम नहीं होता,
में अपनों दुश्मनो के बीच भी महफूज़ रहता हूँ,
मेरी माँ की दुओं का खज़ाना कम नहीं होता ...”

स्वामी नाथ पाण्डे की तीन पंक्तियों वाले उपन्यास पर जरा ध्यान दें, कहते हैं:
एक विधवा मां थी उसके दो बेटे थे, एक बेटा उपर वाले माले पर रहता था, दूसरा बेटा नीचे वाले माले पर रहता था, मां 15 दिन एक बेटे के घर खाती थी, 15 दिन दूसरे बेटे के घर खाती थी, पर उस विधवा मां का दुर्भाग्य था कि जिन जिन महीनों मे 31 तारीख आता था उस दिन उस मां को उपवास रखना पडता था

जब नौ महीने अपनी कोख में सहेज कर रखने वाली मां जिन नालायक बेटों को भारी पड़ने लगी हो तो उन्हें स्व ओम व्यास ओम जी की कालजई कविता पढ़नी चाहिये शायद उन्हें सद बुद्धि आ जाय प्रस्तुत है स्व ओम व्यास ओम जी की अनमोल रचना:-

माँ, माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास हैमाँ,

माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,

माँ, माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,

माँ, माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,

माँ, माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,

माँ, माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,

माँ, माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,

माँ, माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,

माँ, माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,

माँ, माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,

माँ, माँ कलम है, दवात है, स्याही है,

माँ, माँ परमात्मा की स्वयं एक गवाही है,

माँ, माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,

माँ, माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,

माँ, माँ अनुष्ठान है, साधना है, जीवन का हवन है,

माँ, माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,

माँ, माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कं धों का नाम है,

माँ, माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,

माँ, माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,

माँ, माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,

माँ, माँ चुल्हा-धुँआ-रोटी और हाथों का छाला है,

माँ, माँ ज़िंदगी की कड़वाहट में अमृत का प्याला है,

माँ, माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,

बिना इस सृष्टि की कल्पना अधूरी है,

तो माँ की ये कथा अनादि है,

ये अध्याय नही है……और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,

तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,

और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,

और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,

तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,

और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ।

तो मित्रों मां को सिर्फ़ “मदर डे” पर नहीं हर दिन हर पल हर सांस नमन करें मां के चरणों मे स्वर्ग है, वो हर पल हमारी ही खुशी के लिये जीती रहती है आईए शपथ ले कि हम मां को हर पल “मदर डे” की सौगात देंगे अन्त मे सिर्फ़ इतना कहना है,

“धरती पे इश्वर की तलाश है,
मालिक तेरा बंदा कितना निराश है,
क्यों खोजता है इन्सान इश्वर को,
जबकि तेरे दूसरे रूप में माँ उसके इतने पास है”

इश्वर इस लिये सर्वशक्तिमान है,
अराध्य है,पूजनीय है
क्योंकि उसने मां की रचना की

राज रंजन



2 comments:

  1. Very true. Even I believe that there should be no mother's day, father's day or any other special day coz we should celebrate everyday, love our near and dear ones, connect with them. Instead of wishing on a particular day, we should enjoy everyday, every moment coz life is only ones and we get limited time for our near and dear ones.

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  2. apne sahi likha hai bhaiya........per in special days ko celebrate karke hum unke liye apni feelings ko xpress karte hai ..........!!!!!!!!

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